सत्यदर्पण:-

सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए। जो उनके राज में न हो सका पूरा, मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले। विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है, देश को लूटा जा रहा है। दिन के प्रकाश में सबके सामने आता सफेद झूठ; और अंधकार में लुप्त सच।

भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो | मानवतावादी वेश में आया रावण | संस्कृति में ही हमारे प्राण है | भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व | -तिलक 7531949051, 09911111611, 9999777358.

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रविवार, 19 सितंबर 2010

शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलन

शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित   शर्मनिरपेक्षता     तिलक राज रेलन
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!

जो तिरंगा है देश का मेरे, जिसको हमने स्वयं बनाया था;
हिन्दू हित की कटौती करने को, 3 रंगों से वो सजाया था;
जिसकी रक्षा को प्राणों से बड़ा मान, सेना दे देती बलिदान;
उस झण्डे को जलाते जो, और करते हों उसका अपमान;
शर्मनिरपेक्ष बने वोटों के कारण, साथ ऐसों का दिया करते हैं;
मानवता का दम भरते हैं, क्यों फिर भी शर्म नहीं आती?
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष....
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!

वो देश को आग लगाते हैं, हम उनपे खज़ाना लुटाते हैं;
वो खून की नदियाँ बहाते हैं, हम उन्हें बचाने आते हैं;
वो सेना पर गुर्राते हैं, हम सेना को अपराधी बताते हैं;
वो स्वर्ग को नरक बनाते हैं, हम उनका स्वर्ग बसाते हैं;
उनके अपराधों की सजा को,रोक क़े हम दिखलाते हैं;
अपने इस देश द्रोह पर भी, हमको है शर्म नहीं आती!
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!

इन आतंकी व जिहादों पर हम गाँधी के बन्दर बन जाते;
कोई इन पर आँच नहीं आए, हम खून का रंग हैं बतलाते;
(सबके खून का रंग लाल है इनको मत मारो)
अपराधी इन्हें बताने पर, अपराधी का कोई धर्म नहीं होता;
रंग यदि आतंक का है, भगवा रंग बताने में हमको संकोच नहीं होता;
अपराधी को मासूम बताके, राष्ट्र भक्तों को अपराधी;
अपने ऐसे दुष्कर्मों पर, क्यों शर्म नहीं मुझको आती;
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष....
कारनामे घृणित हों कितने भी, शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!

47 में उसने जो माँगा वह देकर भी, अब क्या देना बाकि है?
देश के सब संसाधन पर उनका अधिकार, अब भी बाकि है;
टेक्स हमसे लेकर हज उनको करवाते, धर्म यात्रा टेक्स अब भी बाकि है;
पूरे देश के खून से पाला जिस कश्मीर को 60 वर्ष;
थाली में सजा कर उनको अर्पित करना अब भी बाकि है;
फिर भी मैं देश भक्त हूँ, यह कहते शर्म मुझको मगर नहीं आती!
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!

यह तो काले कारनामों का,एक बिंदु ही है दिखलाया;
शर्मनिरपेक्षता के नाम पर कैसे है देश को भरमाया?
यह बतलाना अभी शेष है, अभी हमने कहाँ है बतलाया?
हमारा राष्ट्र वाद और वसुधैव कुटुम्बकम एक ही थे;
फिर ये सेकुलरवाद का मुखौटा क्यों है बनवाया?
क्या है चालबाजी, यह अब भी तुमको समझ नहीं आती ?
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !! शर्म मुझको तभी नहीं आती !!

पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.
उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं!
 आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
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भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो,
छद्म वेश में फिर आया रावण! संस्कृति में ही हमारे प्राण है!
भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व -तिलक

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