सत्यदर्पण:-

सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए। जो उनके राज में न हो सका पूरा, मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले। विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है, देश को लूटा जा रहा है। दिन के प्रकाश में सबके सामने आता सफेद झूठ; और अंधकार में लुप्त सच।

भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो | मानवतावादी वेश में आया रावण | संस्कृति में ही हमारे प्राण है | भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व | -तिलक 7531949051, 09911111611, 9999777358.

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रविवार, 4 नवंबर 2012

भारतीय शिक्षा प्रणाली का विनाश

भारत की वर्तमान दुर्दशा के कारण व निवारण / भा (1)
भारतीय शिक्षा प्रणाली का विनाश 
(विवेकानंद स्टडी सर्कल, आईआईटी मद्रास. के तत्वावधान में जनवरी 1998 में दिए गए एक भाषण से अनुकूलित)  कृ इसे पूरा पढ़ें, समझें व जुड़ें
परिचय भूमिका 
ईस्ट इंडिया कंपनी और ततपश्चात, ब्रिटिश शासन में, लगता है शासकों के मन में दो इरादे काम कर रहे थे इस देश के मूल निवासी के धन लूटना और सभ्यता को डसना हम देखें, इन को प्राप्त करने के लिए, ब्रिटिश ने इतनी चतुराई से चाल चली है, व पूरे राष्ट्र पर सबसे बड़ा एक सम्मोहन बुना, कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम, अभी भी व्यामोह कीस्थिति से निकलने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं
संभवत: हम में से बहुत से भारतीयों को पता ही नहीं है, कि ब्रिटिश के यहाँ आने तक भारत विश्व का सबसे धनी देश था जबकि पहले विश्व निर्यात के रूप में भारत के 19% अंश के विरूद्ध ब्रिटेन का अंश केवल 9% था, आज हमारा अंश केवल 0.5% है उन्नीसवीं सदी तक कोई यात्री भारत के तट पर आया, उस समय भारत गरीब नहीं पाया गया है, लेकिन विदेशियों में अधिकांश शानदार धन की खोज में भारत आए "मदर इंडिया के बचाव में, एक विदेशी Phillimore का वक्तव्य", "18 वीं सदी के मध्य में, Phillimore ने किताब में लिखा है कि कोई यात्री विदेशी व्यापारियों और साहसी लगभग शानदार धन, चन्दन लकड़ी, जो वे वहाँ प्राप्त कर सकता है, के लिए उसके तट पर आया'मंदिर के पेड़ को हिलाना' एक मुहावरा था, कुछ हद तक हमारे आधुनिक अभिव्यक्ति 'तेल के लिए खोज' के समान हो गया है
भारत के गांव में 35 से 50% भूमि भाग, राजस्व से मुक्त थे और कहा कि राजस्व से स्कूलों, मंदिर त्योहारों का आयोजन, दवाओं के उत्पादन, तीर्थयात्रियों का खिलाना, सिंचाई में सुधार आदि चलता रहा है उन अंग्रेजों के लालच ने राजस्व मुक्त भूमि 5के नीचे किया गया था नीचे करने के कारण जब वहाँ एक विरोध रहता था, तब वे भारतीयों को आश्वासन दिया था कि सिंचाई की देखभाल के लिएसरकार ने सिंचाई विभाग बनाने,  एक शिक्षा बोर्ड को शिक्षा का ख्याल रखना होगा आदि। अत: लोगों की पहल व स्वावलम्बन को नष्ट कर दिया गया था लगता था, शासक उनको तंग करने के लिए मिला है उन्होंने पाया कि हालांकि अंग्रेजों ने इस देश पर विजय प्राप्त की थी, यह समाज अभी भी दृढ़ता से अपनी संस्कृति में निहित था वे जान गए कि जब तक यह समाज सतर्क है और यहां तक ​​कि अपनी परंपराओं का गर्व था, सदा उनके 'सफेद आदमी' बोझ 'के रूप में भारी और बोझिल' बना रहेगा उस समय भारत की शिक्षा प्रणाली एक व्यवस्था से बहुत अच्छी तरह से फैली थी, और अपने उद्देश्यों के लिए अप्रभावी बनाया जाना आवश्यक था अब, हम में से अधिकांश को समझाया/भरमाया गया है कि शिक्षा ब्राह्मणों के हाथों में और संस्कृत माध्यम में है, अत: अन्य जातियों को कोई शिक्षा नहीं देता था लेकिन कैसे ब्रिटिश ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया और एक सबसे साक्षर देश का नाम अनपढ़ देशों आया के बारे में तथ्य यहाँ आगे हैं। :- 
अपने भाषणों में महात्मा गांधी ने 1931 में गोलमेज सम्मेलन में कहा, "शिक्षा के सुंदर पेड़ को आप ब्रिटिश के द्वारा जड़ से काटा गया था और इसलिए भारत आज 100 वर्ष पहले की तुलना में कहीं अधिक अनपढ़ है" इसके तत्काल बाद, फिलिप हार्टोग, जो एक सांसद था, उठ खड़ा हुआ और कहा, "Mr. Gandhi, यह हम है, जो भारत की जनता को शिक्षित किया है। इसलिए आप अपने बयान वापस ले और क्षमा मांगे या यह साबित करें "गांधी जी ने कहा कि वह यह साबित कर सकता हूँ। लेकिन समय की कमी के कारण बहस को जारी नहीं किया गया था। बाद में उनके अनुयायियों में से एक श्री धर्मपाल ने, ब्रिटिश संग्रहालय में जाकर रिपोर्ट और अभिलेखागार की जांच की वह एक पुस्तक प्रकाशित करता है,"द ब्यूटीफुल ट्री" जहां इस मामले में बड़े विस्तार में चर्चा की गई है। ब्रिटिश ने 1820 तक, हमारी शिक्षा प्रणाली के समर्थक वित्तीय संसाधनों को पहले से ही नष्ट कर दिया था एक विनाश कार्य वे लगभग बीस वर्षों से चला रहे थे लेकिन फिर भी भारतीय मांग शिक्षा की अपनी प्रणाली के साथ जारी रखने में बनी रही।  तो, ब्रिटिश सरकार ने इस प्रणाली की जटिलताओं को खोजने का फैसला किया। इसलिए 1822 में एक सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था और ब्रिटिश जिला कलेक्टरों द्वारा आयोजित किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि बंगाल प्रेसीडेंसी के मद्रास में 1 लाख गांव में स्कूल, बंबई में एक स्कूल के बिना एक भी गांव नहीं था, अगर गांव की आबादी 100 के पास रहे तो गांव में एक स्कूल था। इन स्कूलों में छात्रों तथा शिक्षक के रूप में सभी जातियों के थे। किसी भी जिले के शिक्षकों में ब्राह्मणों की संख्या 7% से 48% व शेष अन्य जातियों से थे। इसके अलावा सभी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त होती थी
स्कूलों से बाहर आते समय तक छात्रों में वह प्रतिस्पर्धी क्षमता प्राप्त कर ली जाती थी और अपनी संस्कृति की उचित जानकारी होना और समझने में सक्षम रहता है। मद्रास में एक ईसाई मिशनरी के एक Mr.Bell, भारतीय शिक्षा प्रणाली वापस इंग्लैंड के लिए ले गए। तब तक, वहाँ केवल रईसों के बच्चों को शिक्षा दिया जाती थी और वहाँ इंग्लैंड में आम जनता के लिए शिक्षा शुरू की। ब्रिटिश प्रशासकों ने भारतीय शिक्षकों की क्षमता और समर्पण की प्रशंसा की हम समझ सकते है कि ब्रिटिश जनता को शिक्षित करने के लिए भारत से जनसामान्य शिक्षा प्रणाली को अपनाया गया वर्तमान प्राथमिक शिक्षा के समकक्ष 4 से 5 वर्ष तक चली हम सभी जानते हैं कि राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा ही महत्वपूर्ण है, न कि केवल कुछ को उच्च शिक्षा मिलती रहे। 
शेष है:- गिरावट का कारण: निम्नतर निस्पंदन विधि. तथा हताशा की जनक मैकाले की प्रणाली ।  
-राजीव दीक्षत-  http://www.youtube.com/watch?v=rcUaUfesoRE
देश की श्रेष्ठ प्रतिभा, प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास | -तिलक संपादक
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए | आओ, मिलकर इसे बनायें; - तिलक

सोमवार, 3 सितंबर 2012

गुजरात दंगे का सच ??

गुजरात दंगे का सच ?? क्या आप सचमुच जानते हैं कि.....? **

                                                    Godhara 2002
क्यों, आज जहाँ देखो वहाँ, गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है?...फिर चाहे वो गूगल हो या फेसबुक हो या फिर टीवी..समाचार पत्र, पत्रिका.!
क्यों? आए दिन, गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है। नित नए-नए खुलासे हो रहे हैं...वास्तव में,10 -12 वर्ष पूर्व, मोदी के हाथ सत्ता आने से पूर्व तक, जब कोई भी समाज की नहीं सोचता था भूकंप पीड़ित कच्छ, विद्युत अव्यवस्था, बिखरा तंत्र, ऊपर से दंगे, दयनीय गुजरात को कौन संभाले? किसी को ये आशा नहीं थी कि इतना कुशल प्रशासक है, ये 'नरेन्द्र भाई मोदी'। मोदी ने सम्भाल ही नहीं, चमका भी दिया। शर्म निरपेक्ष लुटेरों, उनके पालतू मीडिया, छद्म रूप में छुपे मानवाधिकार (धिक्कारवादी), बुद्धिभोग के रोगी, भ्रष्ट नोकरशाह, आदि की पूरी शर्मनिर्पेश मंडली....और भारत को लूटने वाले, हर व्यक्ति की ईर्ष्या व राह का कांटा बन गया  ...जिस कारण पूरी शर्मनिर्पेश मंडली, एक स्वर में गुजरात दंगो की ही भर्त्सना करते हैं जी-जान से इस काम में जुटे हैं कि राह से ये निकल कांटा जाये किन्तु दंगे गुजरात के बाहर भी हुए, अब भी होते हैं मथुरा, इसका ताज़ा उदाहरण है असम या मुंबई में, किसकी सरकार है ? उनके विरुद्ध मोदी के गुजरात जैसा, छाती पीटना क्यों नहीं हैं ? केवल हम ही नहीं, इस देश में मुस्लिम भी बहुत से हैं, एपीजे अ कलाम  की भांति, भारतीय बन कर सोचते हैं...शायद इसीलिए, मोदी हम हिन्दुओं के ही नहीं, भारत का विकास चाहने वाले, हर व्यक्ति के चहेते हैं   हालाँकि, दंगो पर राजनीती नहीं होनी चाहिए, फिर भी जिसे देखो, 10 वर्ष से गुजरात के दंगों पर तो छाती पीटने लगता है किन्तु उसे मथुरा असम या मुंबई के दंगो या कश्मीर के हिन्दुओं का दर्द क्यों नहीं दीखता ? खून का रंग एक बताने वालों को, दंगो के दर्द का रंग, क्यों एक नहीं लगता ? आतंक का कोई धर्म नहीं, कहने वाले, कैसे हिन्दू आतंकवाद कह पाते है? इस दोगलेपन को समझना होगा, इसके निहितार्थ का अर्थ जानना होगा? तभी समस्याओं का समाधान करने में सफल हो सकते हैं, हम लोग...
क्या आप, इन तथ्यों को जानते हैं? :-
1) 27 फरवरी 2002 को साबरमती ट्रेन के S6 बोगी को गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब 826 मीटर की दूरी पर जला दिया गया था....जिसमें 57 मासूम, निहत्थे और निर्दोष हिन्दू कारसेवकों की मौत हो गयी थी।
2) प्रथम द्रष्टा रहे, वहाँ के 14 पुलिस के जवान, जो उस समय स्टेशन पर उपस्थित थे और उनमें से 3 पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुंचे और साथ ही पहुंचे, अग्निशमन दल के एक जवान, सुरेशगिरी गोसाई जी....! यदि, हम इन चारों लोगों की मानें, तो "निगम पार्षद हाजी बिलाल" भीड़ को आदेश दे रहे थे,.... ट्रेन के इंजन को जलाने का......! साथ ही साथ,....जब ये जवान, आग बुझाने का प्रयास कर रहे थे,..... तब भीड़ के द्वारा ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई।
3) अब, इसके आगे बढ़ कर देखें, तो.... जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टुकड़ी पहुंची, तब 2 लोग 10,000 की भीड़ को उकसा रहे थे
.... ये थे निगम अध्यक्ष मोहम्मद कलोटा और निगम पार्षद हाजी बिलाल। अब प्रश्न उठता है कि..... मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को, किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए ?? प्रश्नों के बाण, यही नहीं रुकते हैं..... बल्कि प्रश्नों की सूची अभी काफी लम्बी है। अब प्रश्न उठता है कि .... क्यों मारा गया, ऐसे राम भक्तो को ??
4) कुछ मीडिया ने बताया कि ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे थे
….अब क्या कोई, बताएगा कि ..... "क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं ??" किन्तु, इसके पहले भी एक हादसा हुआ, 27 फ़रवरी 2002 को सुबह 7.43 मिनट 4 घंटे की देरी से, जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा, तो... प्लेटफ़ॉर्म से100 मीटर की दूरी पर ही, 1000 लोगो की भीड़ ने, ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए।  पर, यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया.....! किन्तु, जैसे ही ट्रेन कठिनाई से 800 मीटर चली,...... अलग-अलग बोगियों से, कई बार चेन खींची गई।
5) शेष कहानी, जिस पर बीती, उसकी जुबानी
......... . उस समय मुश्किल से 15-16 की बच्ची की जुबानी ::
ये बच्ची थी, कक्षा 11 में पढने वाली गायत्री पंचाल, जो कि उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी
.... उसकी मानें, तो... ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी;.....एक दम से चेन खींचकर रोक दिया गयाउसके बाद देखने में आया कि... एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है..... हथियार भी कैसे?....... लाठी- डंडा नहीं, बल्कि.... तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बम और पता नहीं क्या -क्या.........
6) भीड़ को देख कर, ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए
....... पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे,...वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बाहर खड़ी भीड़, मारो -काटो के नारे लगा रही थी। एक लाउड स्पीकर, जो कि पास के मस्जिद पर था,.......उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था, कि ..... “मारो... काटो.. लादेन ना दुश्मनों ने मारो” !
इसके साथ ही
बाहर खड़ी भीड़ ने, पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया... जिससे कोई जिन्दा ना बचे....ट्रेन की बोगी में चारों तरफ पेट्रोल भरा हुआ था!.... दरवाजे बाहर से बंद कर दिए गए थे, ताकि कोई बाहर ना निकल सके!... एस-6 और एस-7 के वैक्यूम पाइप काट दिए गए थे, ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके!.... जो लोग जलती ट्रेन से किसी प्रकार बाहर निकल भी गए, तो.... उन्हें तेज हथियारों से काट दिया गया .... कुछ गहरे घाव के कारण से, वहीँ मर गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए।
7) क्यों जनता से छुपाया गया, कि अपर न्यायाधीश पीआर पटेल सत्र ने 31 व्यक्तियों को दोषी दहराया, एक "पूर्व नियोजित षड्यंत्र" आयोजित करने और साबरमती एक्स के S-6 कोच में, आग लगाने का इस घटना में 59 लोग, जिनमें अधिकतर विश्व हिंदू परिषद कार सेवक, मारे गए थे अदालत ने 11 दोषियों को मृतुदंड, अन्य 20 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी जिन्होंने, विशेष रूप से पिछली रात एक बैठक में षड्यंत्र रचने, वास्तव में कोच में प्रवेश पेट्रोल डालकर आग लगाने का काम किया
न्यायाधीश ने 826 पृष्ठ के अपने फैसले में, "1965 और 1992 के बीच गोधरा में सांप्रदायिक हिंसा की कुछ (10) घटनाओं को उद्धृत किया", और कहा कि कई दंगों के दौरान "हिंदुओं को जिंदा जला दिया और उनके दुकानों और घरों को आग से नष्ट किया गया था"न्यायाधीश केजी शाह, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जी.टी. नानावटी द्वारा प्रस्तुत, 2008 की रिपोर्ट में भी कहा गया, कि षड़यंत्र का कथित पुरोधा, रज्जाक कुरकुर, के अमन गेस्ट हाउस में, साबरमती के आने से पूर्व ही, इतनी मात्र में पेट्रोल व ज्वलन पदार्थ एकत्र करना; एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र पुष्टि करता है कथित मास्टरमाइंड प्रभावशाली मौलवी, मौलवी हुसैन हाजी इब्राहिम उमरजी और एक कें. रि. पुलिस बल का नानुमियां नामक अधिकारी, (असम निवासी) जो इसी गेस्ट हाउस में ठहरता था, ने मुसलमानों की भीड़ को उकसाया थाइसके अतिरिक्त, घटना से पहले, एक पखवाड़े के लिए एक ही डाक बंगले में रहे, दो कश्मीरियों गुलाम नबी और अली मोहम्मद, ने इन्हें कश्मीर मुक्ति आंदोलन के बारे में बोले थे [3]. सबसे प्रमुख बात, जमीअत उलेमा हिंद ने, 2002 में दावा किया है, कि कुछ क्षेत्रीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हिंसा के अपराधियों के साथ सहयोग किया. (अनुवादित विवरण).
अब प्रश्न उठता है, कि....
दंगा (पूर्वनियोजित) हिन्दुओं ने, सुबह 8 बजे ही क्यों नहीं शुरू कर किया ? बल्कि हिन्दू उस दिन दोपहर तक शांत बना रहा (ये बात आज तक किसी को नहीं दिखी है) ??
वास्तव में,..... हिन्दुओं ने, जवाब देना तब चालू किया, जब उनके घरों, गावों, मोहल्लो में, वो जली और कटी फटी लाशें पहुंची
......क्या, ये लाशें, हिन्दुओं को मुसलमानों की ओर से उपहार थी ? जो हिन्दुओं को शांत बैठना चाहिए था,.....सेकुलर बन कर ?
हिन्दू सड़क पर उतरे, 27 फ़रवरी 2002 की दोपहर से,....पूरे एक दिन, हिन्दू शांति से घरो में बैठे रहे....!
यदि, वो दंगा पूर्व नियोजित था और हिन्दुओं ने या मोदी ने करना था, तो 27 फ़रवरी 2002 की प्रात: 8 बजे से ही क्यों नहीं, चालू हुआ....?? प्रतिक्रिया स्वरूप

जबकि मोदी ने, 28 फ़रवरी 2002 की शाम को ही सेना को सडकों पर लाने का आदेश दे दिया, जो कि अगले ही दिन 1 मार्च 2002 को पूरा हो गया और सडको पर सेना उतर आयी ..... गुजरात को जलने से बचाने के लिए....!
पर, भीड़ के आगे सेना भी कम पड़ रही थी, तो 1 मार्च 2002 को ही मोदी ने, अपने पडोसी राज्यों से, सुरक्षा कर्मियों की मांग कर दी...
ये पडोसी राज्य थे, महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलासराव देशमुख -मुख्यमंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग्विजय सिंह - मुख्यमंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत- मुख्यमंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री) ...
क्या कभी, किसी ने भी,.....इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पूछा है, कि........आपने गुजरात में सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं भेजे, जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी ?? या....इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का, गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना ?? ये एक सोची समझी, गूढ़ राजनीतिक चाल और विद्वेष का परिचायक था?
उसी 1 मार्च 2002 को, हमारे राष्ट्रीय मानवाधिकार (National Human Rights) वालो ने, मोदी को अल्टीमेटम दिया, 3 दिन में पूरे घटनाक्रम का रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए ...
किन्तु,... कितने आश्चर्य की बात है कि... यही राष्ट्रीय मानवाधिकार वाले, 27 फ़रवरी 2002 और 28 फ़रवरी 2002 को गायब रहे ..... इन मानवाधिकार वालो ने तो, पहले दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर, ये रिपोर्ट भी नहीं माँगा, कि क्या कदम उठाया गया, गुजरात सरकार के द्वारा? आश्चर्य,...!
एक ऐसे ही, सबसे बड़े घटनाक्रम में दिखाए गए या कहे तो, बेचे गए........ “गुलबर्ग सोसाइटी” के जलने,की वीडियो,......इस गुलबर्ग सोसाइटी ने, पूरे मीडिया का ध्यान अपने तरफ खींच लिया। यहाँ, एक पूर्व सांसद एहसान जाफरी साहब रहते थे। इन महाशय का, ना तो एक भी बयान था, 27 फरवरी 2002 को और ना ही ये डरे थे, उस समय तक.......!
किन्तु,...... जब 28 फरवरी 2002 की प्रात:, जब कुछ लोगो ने इनके घर को घेरा,
तथा जिसमें कुछ कथित मुसलमान भी छुपे हुए थे;..... तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर गोली चलवा दिया अपने लोगो से, जिसमें 2 हिन्दू मरे और 13 हिन्दू गंभीर रूप से घायल हो गए।
जब इस घटनाक्रम के बाद, इनके घर पर भीड़ बढ़ने लगी, तो ये अपने यार-दोस्तों को फ़ोन करने लगे और तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल 42 लोगों की मौत हो गयी। यहाँ, शायद भीड़ के आने पर ही, एहसान साहब को पुलिस को फ़ोन करना चाहिए था, ना कि अपने बन्दों के द्वारा गोली चलवाना चाहिए था। पर इन्होने, गोली चलाने के बाद फ़ोन किया, पुलिस महानिदेशक (DGP) को।
यहाँ एक और झूठ सामने आया,.....जब अरुंधती रॉय, जैसी लेखिका तक ने, यहाँ तक लिख दिया, कि ... एहसान जाफरी की बेटी को नंगा करके, बलात्कार के बाद मारा गया और साथ ही एहसान जाफरी को भी
.....किन्तु,... .. यहाँ एहसान जाफरी के बड़े बेटे ने ही, पोल खोल दी, कि .... जिस दिन उसके पिता की जान गई, उस दिन उसकी बहन तो अमेरिका में थी और अभी भी रहती है।
तो यहाँ,.......... कौन, किसको झूठे केस में फंसाना चाह रहा है? ये स्पष्ट है....

अब यहाँ तक, तो सही था,......पर..... ..गोधरा में साबरमती को, कैसे, इस दंगे से अलग किया जाता और हिन्दुओं को इसके लिए आरोपित किया जाता। इसके लिए, लोग गोधरा के दंगे को, ऐसे तो संभाल नहीं सकते थे...अपने शब्दों से,....तो एक कहानी प्रकाश में आई.....!
कहानी थी, कि .... कारसेवक गोधरा स्टेशन पर, चाय पीने उतरे और चाय देने वाला, जो कि एक मुसलमान था, उसको पैसे नहीं दिए
…जबकि गुजराती अपनी ईमानदारी के लिए ही जाने जाते हैं।
चलिए, छोडिये! ये धर्मान्धो की कहानी में कभी दिखेगा ही नहीं,.... आगे बढ़ते हैं।
अब कारसेवकों ने पैसा तो दिया नहीं, बल्कि मुसलमान की दाढ़ी खींच कर, उसको मारने लगे
तभी उस बूढ़े मुसलमान की बेटी, जो की 16 वर्ष की बताई गई, वो आई; तो कारसेवको ने, उसको बोगी में खींच कर, बोगी का दरवाजा, अन्दर से बंद कर लिया। और इसी के प्रतिफल में......मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और 58 लोगो को मार दिया..... जिन्दा जलाकर या काटकर। अब, यदि इस मनगढ़ंत कहानी को, मान भी लें, तो कई प्रश्न उठते हैं:
क्या, उस बूढ़े मुसलमान चायवाले ने, रेलवे पुलिस को सूचित किया ??
रेलवे पुलिस, उस ट्रेन को वहाँ से जाने ही नहीं देती या लड़की को उतार लिया जाता
.....उस बूढ़े चाय वाले ने, 27 फ़रवरी 2002 को, कोई प्राथमिकी, क्यों नहीं दाखिल किया ??
सुबह 8 बजे, सैकड़ो लीटर पेट्रोल, आखिर आया कहाँ से??
5 मिनट में ही, सैकड़ो लीटर पेट्रोल और इतनी बड़ी भीड़, आखिर जुटी कैसे ?? एक भी केस, 27 फ़रवरी 2002 की तारीख में, मुसलमानों के द्वारा, क्यों नहीं, दाखिल हुआ ??
अब रेलवे पुलिस कि जांच में ये बात सामने आई, कि ...... उस दिन गोधरा स्टेशन पर, कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं थी। ना तो चाय वाले के साथ, कोई झगडा हुआ था और ना ही किसी लड़की के साथ, कोई बदतमीजी या अपहरण की घटना हुई.....!
इसके बाद आयी, नानावती रिपोर्ट में कहा गया है, कि.... जमीअत-उलमा-इ-हिद का हाथ था, उन 58 लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने में। उससे भी बड़ी बात, कि.....दंगे में 720 मुसलमान मरे, तो 250 हिन्दू भी मरे.....!
मुसलमानों के मरने का सभी शोक मनाते हैं,....चाहे वो सेकुलर हिन्दू हो....चाहे, वो मुसलमान हो या चाहे वो राजनेता या मीडिया हो !
पर दंगे में 250 मरे हुए हिन्दुओं और साबरमती ट्रेन में मरे 58 हिंदुओं को कोई नहीं पूछता है
....कोई, बात तक नहीं करता है। सभी को केवल मरे हुए, मुसलमान ही दिखते हैं...!
एक और बात ध्यान देने योग्य है, क्या, किसी भी मुस्लिम नेता का बयान आया था, साबरमती ट्रेन के जलने पर??
क्या, किसी मुस्लिम नेता ने, साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के लिए, खेद प्रकट किया ??
इसीलिए, सच को जानिए......और जो भी गुजरात दंगे की बात करे अथवा नरेन्द्र मोदी के बारे में बोले,....... उसे उसी की भाषा में, जबाब दें....!
गुजरात दंगा,..... मुस्लिमों के द्वारा शुरू किया गया था
.....और हम हिन्दुओं को, उनसे इस बात का जबाब मांगना चाहिए.....और उन्हें दोषी ठहराना चाहिए....!
अथवा... क्या, वे लाशें हिन्दुओं को मुसलमानों की और से उपहार थी, जो हिन्दुओं को शांत बैठना चाहिए था ??
स्रोत: हिन्दू भारत का लेख...2 मई 2012
नोट: इस पोस्ट को इतना शेयर करें, कि..... मुस्लिमों और सेकुलरों
(शर्मनिर्पेश मंडली), की बोलती बंद हो जाए.....तथा ये सच हिन्दुओं के बच्चे-बच्चे तक पहुँच जाये...तभी, हम भारत के शत्रुओं को मुंहतोड़ उत्तर, दे पाएंगे। 
भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो, छद्म वेश में फिर आया रावण! संस्कृति में ही हमारे प्राण है! भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व -तिलक

बुधवार, 29 अगस्त 2012

मेले कई प्रकार के होते है:

मेले कई प्रकार के होते है: जीवन के मेले में ख़ुशी और गम, कभी मिलते हैं सनम कभी सितम,...
Photo: **परिवर्तन-  नियम *****
भ्रस्टाचार ना कभी पैदा हुआ ना कभी ख़त्म हुआ
परिवर्तन है इसका आधार फिर भी पाता सबका प्यार
हर युग में बदला इसका रूप है कहीं छांव तो कहीं धूप है
हर पल एक नया स्वरुप है हर पल यह वक्त के अनुरूप है
आम आदमी अपने पेट के साथ जल जाता है, मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन, नियम आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
इसने बदली उसने बदली,जिसकी सत्ता उसने बदली
पाया जिसने सबने बदली ,मन तो बस धन की पगली
कलयुग में बन मर्यादा की चरणपादुका घर - घर पूजा जाता है
जो भ्रस्टाचारी हो मसीहा बन जाता है, इन्सान तो अक्सर छल जाता है
भ्रस्टाचार की आग में अपने पेट के साथ जल जाता है मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन नियम आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
आचरण -सभ्यता - परम्परा सबकी आत्मा मार चूका है
भ्रस्टाचार पूर्ण रूप से छा चूका है आ चूका है
बहुत कठिन अब लडाई है जन -जन में इसने आग लगायी है
हर कोई बनता अब भ्रस्टाचार का भाई है ना कोई बहन या भाई है
भ्रस्टाचार की आंधी आई है लड़नी हमें हर लडाई है
भ्रस्टाचार की आग में अपने पेट के साथ जल जाता है मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन नियम आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
कलम ही कर सकता है इसका सर कलम, जब मिले कलम से कलम
मत खाओ अपने हालत पे रहम, लड़नी तुम्हे लडाई है
भ्रस्टाचार की आंधी आई है, लड़नी हमें हर लडाई है
योगी मन हर प्राणी अब घायल है, भ्रस्टाचार से पागल है
उठो जागो और लड़ो लडाई , भ्रस्टाचार की आंधी आई है !
भ्रस्टाचार की आग में अपने पेट के साथ जल जाता है मर जाता है
यह है भ्रस्टाचार का परिवर्तन नियम, आजीवन नियम चराचर नियम !!----------
 
यह कविता क्यों ? परिवर्तन के साथ आप इतना ना बदल जाये की वक़्त आने पर खुद को भी परिवर्तित ना कर पायें बचिए और बचाइए अपने आप को और सबको भ्रस्टाचार के नियम से !
जय भारत अरविन्द योगी
 देश में भी कई प्रकार के मेले लगते हैं, कई प्रकार का सामान बिकता है जिसे हम खरीद कर ले जाते हैं अपने घर,.. कभी धार्मिक सांस्कृतिक मेले लगते हैं कभी व्यावसायिक मेले लगते हैं , कोई आवश्यक वस्तुओं का मेला तो  कभी सजावट की वस्तुओं का मेला......
 किन्तु वो मेले याद रखने के लिए नहीं होते, यादगार मेले 2 ही हैं एक आज़ादी से पहले लगा था शहीदों का, एक अब लगा है गद्दारों और लुटेरों का !.....
 वतन पे मिटने वालों को शासन थमाया जो होता, राष्ट्र भक्तों को दिल में बसाया होता; तो ऐसा दिन कभी आया न होता, गद्दारों का मेला यूँ सजाया न होता ! .....वन्देमातरम
भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो, छद्म वेश में फिर आया रावण!
संस्कृति में ही हमारे प्राण है! भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व -तिलक