शर्मनिरपेक्ष रचना का उत्तर
"प्रथम दृष्टया चेहरा जैसा है, कहीं इस रचना का लक्ष्य विपरीतगामी तो नहीं?
तुकबंदी तो अच्छी किन्तु भ्रामक है, यथार्थ देखें 👀"
धर्मनिरपेक्ष दिखने की चाह, कैसे अर्धसत्य को शर्मनिरपेक्ष बना देती?
बाँट दिया इसस धरती को
चाँद सितारों का क्या होगा ?
नदियों के कुछ नाम धरे
बहती धाराओं का क्या होगा ?
शिव की गंगा भी पानी है
आबे जमजम भी पानी है
मुल्ला भी पिये पंडित भी पिये
पानी का मजहब क्या होगा ?
इन फ़िरक़ापरस्तों से पूछो
क्या सूरज अलग बनाओगे ?
एक हवा में सांस है सबकी
क्या हवा नई चलाओगे ?
नस्लों का जो करें बटवारा
रहवर वो कौम का ढोंगी है ?
क्या खुदा ने मंदिर तोड़ा था
या राम ने मस्जिद तोड़ी थी ?
धर्मनिरपेक्षता को आज़द कलम का उत्तर -सत्य न छुपेगा, भ्रामक अर्धसत्य से।
शिव की गंगा तो अमृत है, अवमुल्यन इसका न करो। भूमि सूर्य, चांद सितारे, नदियां सभी सनातन है बच्चे, मिला के मदिरा को जल में अपमानित कर, कैसे कहलाओगे सच्चे?
जन्मभूमि का मंदिर तोड़, वह मस्जिद तो अवैध थी, अभी वैध अवैध नहीं जानते, अभी कलम के हों कच्चे।।
(यह स्वरचित नही संकलित है किन्तु उत्तर आज़द कलम का)
तिलक राज रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार
मु सम्पादक युगदर्पण ®2001 मीडिया समूह YDMS👑
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